आपके दर्शन से मुझमें गति आई है,
पर अब तो मुझे प्रगति करना है।
और प्रगति करके सद्गगति पाना है।
आपके गुणों के चिन्तन से विचारों में बदलाहट आई है,
पर अब तो मुझे विचारधारा को ही बदलना है।
निर्विचार जीवन पाना है।
सिर्फ आपकी अनुकंपा चाहिए।
आपकी जरा सी कृपा चाहिए।
“गुरु सन्निधि में बीते जो क्षण, शिष्य संजोये रखता है।
सुधियों के गहरे सागर में, सदा डुबो ये रखता है।।
मन दर्पण में गुरु की छवि को, सदा बसाये रखना है।
कर्म ताप से बचना है तो, गुरु भक्ति ना तजना है।।”