आप पंचम युग में इस धरती पर अवतरित हुए,
क्योंकि हम गिरते हुए को बचाना था।
आपने अपने बंद नयन खोले,
क्योंकि हमें आत्मदर्शन कराना था।
आपने अपने बंद अधर खोले,
क्योंकि हम प्यासों को जिनवाणी का रस पिलाना था।
“अनेक को मुनि दीक्षा देकर, अर्हत लिंगी बना दिया।
आर्यिका व्रत देकर गुरु ने, शाश्वत शिवपथ दिखा दिया।।
ऐलक क्षुल्लक व्रती बनाकर, विधा धन को बाँट रहे।
इसीलिए गुरु विधासागर, जन-जन के सम्राट हुए।।"