मैं आपसे यह नहीं चाहता कि,
आप मुझे सुखी कर दें।
बल्कि ..
मैं यह चाहता हूँ कि,
कर्मों से पीड़ित मेरी आत्मा को,
दु:ख का भान करा दें।
क्योकि...
इन्द्रिय सुख मुझे सदा सुखी करेगा,
इसमें मुझे संशय है।
लेकिन ...
आत्मिक दु:ख का भान,
मुझे अनंत सुखी अवश्य करेगा,
इसमें कोई संशय नहीं।
“गुरुवर न्यायाधीश हमारे, उचित न्याय कर सुख भर दो।
नि:स्वारथ हो वैध हमारे, कर्म व्याधियाँ सब हर लो।।
नहीं सुनोगे गुरुवर मेंरी, कौन सुनेगा दुनिया में।
दयासिंधु इक नजर देख लो, नीर झर रहा अंखियन में "