आपने गुरु ज्ञानसागर से पाया दिगम्बरत्व,
किंतु स्व पुरुषार्थ से हुए निर्ममत्व,
तभी कदम-कदम पर मूलाचार की चर्या,
और समय-समय पर समयसार की चर्चा,
न्यायप्रिय वचन अध्यात्म की भाषा,
आत्मा के असंख्य प्रदेशों में,
मात्र मुक्ति की अभिलाषा,
यही है आपका संक्षिप्त परिचय,
लक्ष्य है मुक्तिरमा से परिणय।
“मूलाचार दिखे चर्या में, समयसार का चिंतन हैं।
न्याय शास्त्र जिनके वचनो में, आध्यात्मिक ही जीवन है।।
पाने में ना प्रसन्न रहते, खोने में ना खिन्न रहे।
सब संतो में मेरे गुरुवर, विद्यासागर भिन्न रहे।।"