कभी-कभी ऐसा लगता है कि
भक्त आपके दर्शन के लिए संकेत की बाट जोहते रहते हैं,
आपके दर्शन को तड़पते रहते हैं,
फिर भी आप निज दर्शन में लगे रहते हैं,
अपने ज्ञान की बस्ती में मस्त रहते हैं,
क्या आपको इन भक्तों की पीड़ा, वेदना और
उनकी तीव्र प्यास का अहसास नहीं होता!
लगता है अब आप भगवान होने के निकट हैं,
तभी तो उनके दुःख का ख्याल ही नहीं रहता,
भावना है आप शीघ्र भगवान बनें
फिर हम स्वतंत्रता से आपके जी भर दर्शन करें,
न आप रोकें न हम रुकें
हम भी आप सम निजानंद रस चखें।
“ज्ञान देवता गुरुवर से यह, मन मिलने को आतुर हैं।
यह अधीर मन कहता हैं सच, निज दर्शन को व्याकुल है।
मन दर्पण में भूतकाल की, स्मृतियाँ सारी अंकित हैं।
मेंरी श्रद्धा की श्वासों में, गुरुवर के गुण गुंजित हैं।।"