आप जीवन में कामयाबी हासिल कर गए,
मैं श्रद्धा से आपको अनिमेष निहारता रह गया।
आप उच्च शिखर पर पहुँच गए,
मैं तलहटी पर देखता रह गया।
आप ज्ञानसागर में डूब गए,
मैं तट पर खड़ा-खड़ा देखता ही रह गया।
आप रत्नत्रय के पर्वत पर पहुँच गए,
मैं समकित के पड़ाव पर ही ठहर गया।
आप अपने में रम गए,
मैं आपके गुणानुराग में ही रम गया।
आप अपने परमात्मा से मुलाकात करने में लग गए,
और मैं अपने गुरु परमात्मा को लखने में लग गया।
“पाँच पदों के तृतीय पद में, विधासागर नाम बसे।
चऊँ आराधन के आराधक, इनमें चारों धाम बसे।।
रत्नत्रय के धारी गुरु में, तीन लोक की संपद है।
श्रद्धा से गुरुवर को पूजो, मिटती आदी आपद है।।”