इस पंचमकाल में भी आपकी,
सन्मति युग सी चर्या है।
कई बाल ब्रह्मचारी मुनि शिष्य,
और अनेकों आर्यिका शिष्या हैं।
फिर भी परम निस्पृह होकर,
आप अपने आपमें जीते हैं।
करपात्री और पदयात्री होकर,
पल-पल समरस पीते हैं।
आप जैसे संत का...
धरा पर आना ही एक चमत्कार है।
ऐसे गुरु को त्रियोग से बारंबार नमस्कार है।
"वर्द्धमान के बाद प्रथम हीं, ऐसा अवसर पाये हैं।
बाल ब्रह्म कई शिष्यो के गुरू, विधासागर आये हैं।।
आगम के अनुकूल आचारण, करते और कराते हैं।
महासंत श्री विद्यासागर, गुरु को शीश नवाते हैं।। "