आपकी शरण में आकर,
विशुद्धि के क्षणों में...
जो कार्य मैं नहीं करना चाहता,
उसे मैं कभी न करूँ।
और जिन्हें करने का भाव आ रहा है,
उसे कल पर न छोडूँ।
आत्मशुद्धि निरंतर करता ही रहूँ।
मुझे ... ऐसी शक्ति दो।
ऐसी भक्ति दो।
ऐसी युक्ति दो!
“देह धरे पर वैदेही सम, गुरु का वंदन नित्य करूँ।
सहज सरल उपकारी गुरु का, सुमिरन कर भव बंध हरूँ॥
निज गृहवासी सूरीश्वर का, भावों से सम्मान करूँ।
मेरे हृदयासीन मुनीश्वर, बारम्बार प्रणाम करूँ।।”