दुनिया को छोड़ आपसे बात करना अच्छा लगता है।
आपसे बात करने की अपेक्षा,
आपके वीतराग रूप को देखना अच्छा लगता हैं।
आपको देखने की अपेक्षा अपने हृदय में,
आपको समाना ज्यादा अच्छा लगता है।
और अपने आपको इन चरणों में समर्पित कर देना,
सबसे अच्छा लगता है।
इसीलिए ही तो कर दिया है,
आपश्री के चरणों में सर्व समर्पण।
आप इसे जाने या न जाने,
ढुनिया पहचाने या न पहचाने,
मैंने तो अपना मान आपको कर लिया है वंदन।
“पुण्य फलों में हर्ष न धरते, साम्यभाव उर रखते हैं।
पर्यायों की परिणति लखकर, स्वात्म द्रव्य में रमते हैं।।
आत्मभाव के ज्ञायक गुरुवर, परभावों से दूर रहें।
गुरुभक्ति की स्वच्छ भागीरथ, मेरे उर में नित्य बहे।।”