मैं यह नहीं चाहता कि,
आप मुझे निर्दोष कहें।
मैं यह चाहता हूँ कि,
आप मेरे दोष स्वयं कहें।
यदि आप मेरे दोष नहीं बतायेंगे तो...
मैं निंश्चिंत होकर ,
महादोषी बन जाऊँगा।
यदि दोष बता देंगे तो,
प्रायश्चित्त लेकर निर्दोष बन जाऊँगा।
गुणकोष बन जाऊँगा।
“जननी सम गुरुवर शिष्यों के, कर्म कलंक मिटाते हैं।
करुणा से प्रायश्चित्त देकर, आगे उसे बढ़ाते हैं।।
स्वच्छ भाव युत शिष्य देख गुरु, फूले नहीं समाते हैं।
ऐसे गुरु विद्यासागर जी, मेरे मन को भाते हैं।।''