मैं जब तक इच्छा रहित न हो जाऊँ,
तब तक मुझे अशुभ इच्छा से बचाते रहियेगा।
मैं जब तक पूर्णमति को न पाऊँ,
तब तक मुझे दुर्गति से बचाते रहियेगा।
मैं जब तक मान रहित न हो जाऊँ,
तब तक अपमान और सम्मान के
विचारों से बचाए रखियेगा।
मैं जब तक भगवान न बन जाऊँ,
तब तक मुझे अपनी भक्ति से वंचित न कीजियेगा।
“तन की माता जन्म दे सके, कर्म नाश ना कर सकती।
आतम के भावों को पावन, गुरुवाणी ही कर सकती।।
है अनंत उपकार आपका, वचनों से कैसे गाऊँ।
गुरुकृपा से गुरु भक्ति कर, स्वात्म गुणों में रम जाऊँ।।”
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