जैसे... एक युवक,
नया कार्य प्रारंभ करने में घबराता है,
किंतु पीछे से उसके पिताश्री कहते हैं -
घबराते क्यों हो !
"मैं हूँ ना"
ऐसे ही... मैं
हर नया कार्य करने में घबराता हूँ,
मुझे भी हे परम पिता!
बस इतना कह दीजिए...
"मैं हूँ ना"
फिर तो मैं निश्चिंत हो,
निष्काम बन जाऊँगा...ध्रुवधाम पा जाऊँगा।
“ श्री गुरुवर की स्मृति मात्र से, मुक्ति होना संभव है।
किंतु गुरु भक्ति छूटे तो, शिवपद सदा असंभव है।।
अतः हृदय वीणा पर, गुरु की भक्ति नियमित नित्य करूं।
गुरुवर विद्यासागर जी की, भक्ति से आनंद वरूँ।।”