मुझे दोषों की,
क्षमा माँगने योग्य तो,
आपने बना दिया।
अब...
दोष करने वाली मति को भी,
निर्दोष कर दीजिए।।
“ शिल्पी ज्यों पत्थर तराश कर, पावन प्रतिमा प्रकटाते।
वैसे ही गुरु शिष्यगणों के, अहंकार को विनशाते।।
मान नशा निज दर्श दिखाते, यही गुरु की गरिमा है।
ऐसे पावन विद्या गुरु की, गाते अनुपम महिमा है।।"