प्रथम आप शिष्यों की परिणति परखते हैं,
तदुपरांत अपने पास रखते हैं,
परिणाम बदलते हैं,
तो परिणति भी बदलती है।
परिणति बदलती है,
तो अनुभूति भी बदलती है।
और यह सब संभव है आपके समागम से,
आपमें बसे जिनागम से,
आपके भक्त हृदय में आगमन से।
“विधालय में ज्ञान प्राप्ति के, बाद परीक्षा होती है।
गुरु समीप में शिष्य जनों की, प्रथम परीक्षा होती है।।
गुरुवर की हर बात अनोखी, ज्योतिर्पुंज दिवाकर है ।
वसुंधरा पे वर्धमान से, लगते विधासागर हैं।।”