दुनिया को समझने के लिए,
जिस बुद्धि का मैं उपयोग करता हूँ।
उस बुद्धि से आपको समझने का,
प्रयास भी न करूँ।
जिन चक्षुओं से मैं दुनिया को देखता हूँ।
उन चक्षुओं से आपको देखने की
धृष्टता कभी न करूँ।
हे गुरुवर... मुझे, इतनी भक्ति देना,
इतनी शक्ति देना।।
“रत्नद्वीप के राही गुरुवर, पावन पथ को दिखलाते।
मैं नादान अबोध बाल हूँ, मुझको निज से मिलवा दो।।
जहाँ कहीं जाओगे गुरुवर, शिष्य आपकी छाया है।
मुक्ति शक्ति के दाता गुरुवर, दास शरण में आया है।।"