निजात्म के विषय में जो अल्पज्ञता है,
उसका मुझे इतना विकल्प नहीं,
जितना कि शुद्धात्म के विषय में,
जो अज्ञानता है उसका विकल्प है।
मेरी इस अज्ञानता को मिटा दीजिए।
ज्ञान के आवरण को हटा दीजिए।
पूर्ण विद्या की छाँव में बिठा लीजिए।
निवेदन है अरज सुन लीजिए।
“सघन वृक्ष के तले कभी भी, वह छाया ना मिल सकती।
जो गुरुवर के चरण निकट में, शीतल सी छाया मिलती।।
इसीलिए तो दूर-दूर से, भक्त दर्शनों को आते।
श्री गुरुवर की महावीर सी, मूरत लखकर सुख पाते।।''