मैं उपयोग को पर में भटकाता हूँ तो,
मुझे बहुत दुःख भोगना पड़ता है।
यह समझकर
मैं ज्ञान को अन्य कहीं भटकाना नहीं चाहता,
लेकिन….
जहाँ मुझे लगाना है उसे मैं पहचानता भी नहीं,
मेरे ज्ञान को वहीं लगा दीजिए ना,
जहाँ आपने अपने ज्ञान को लगाया है।
“नहीं चाहिए जड धन दौलत, ना चाहूँ जग की रव्याति।
बना रहे संबंध आपसे, जैसे दीपक से बाती।।
जब तक मोक्ष तच्व ना पाऊँ, हदय रहे तव चरणन में।
तव चरणन मम हदय रहे बस, भाव यही निज आतन में।।”