जब आपके गुणसागर में प्रवेश पाता हूँ,
तो स्वयं से दूर हो जाता हूँ।
फिर भी बहुत आनंद पाता हूँ,
क्योंकि आपके समीप रहता हूँ।
मुझको मेरे निकट लाने वाले भी तो आप हैं,
सच आप अनाथों के नाथ हैं।
आपके चरणों में मम माथ है।
‘‘सरल स्वभावी मेरे गुरुवर, बालक सा मन निश्चल है।
सागर से गहरे, सुमेरु सम उन्नत और अविचल हैं।।
त्रयगुप्ति बारह तपधारी, दश धर्मों को धार रहे।
षट् आवश्यक पंचाचारी, गुरुवर भव से पार करें।।”