मेरे पास ऐसा स्वच्छ सरोवर भी नहीं,
जिसकी धार आपके चरणों में बहा सकूँ।
मेरे पास ऐसा बाग भी नहीं,
जहाँ के सुमन आपके चरणों में अर्पित कर सकूँ।
मेरे पास ऐसा चंदन तरू भी नहीं,
जिसे घिस- घिस कर आपकी पूजा कर सकूँ।
फिर भी हे विशाल हृदय!
आपने मुझे भावना पूर्ण करने के लिए,
श्रद्धा का सरोवर, ज्ञान का बाग
और चारित्र का चंदन दे दिया।
“समता धन से भक्त गणों का, गुरु गुजारा करते हैं।
पालन-पोषण कर शिष्यों का, संकट सारा हरते हैं।।
सब कुछ दे ते कुछ ना लेते, उदार जिनका हृदय रहा।
ज्ञानधनी गुरुदेव कृपा से, स्वात्म ज्ञान मम उदय हुआ।।”