निज गुणों से एकत्व,
और पदार्थ से विभाक्त्व,
निजात्मा को आप जानते हो,
तभी तो...
किसी को भक्त नहीं बनाते हो,
शवणागत को संयम मंत्र दे,
प्रभु पथ दिखला देते हो।
सशक्त होकर पर से अनासक्त होकर,
अपने आप में रम जाते हो,
चाहे कोई कितना ही अमीर आये,
चाहे कोई निर्धन आये,
आप अपने में रहते हो।
पर से पृथक्त्व रहते हो
स्वभाव में रमते हो।
“पत्थर की अचेत प्रतिमा को, सूरि मंत्र जब देते हैं।
पूज्य बनाकर गुरु स्वयं ही, उन्हें नमन कर लेते हैं।
शिष्य सचेतन श्री गुरुवर से, मंत्र प्राप्त कर लेता है।
भविष्य में वह परम पूज्य पद, सिद्धदशा पा लेता है।''