आपके वीतराग स्वरूप के दर्शन से,
स्वात्म दर्शन होता है।
आपके प्रत्यक्ष प्रवचन श्रवण से,
पाप का क्षरण होता है।
आपकी कृपा भरी स्नेह करुण दृष्टि से,
द्वेष भाव तत्काल भाग जाता है।
आपकी आराधना करने से,
अंत में स्वानुभूति का गीत गूँजता है।
इसमें आपका क्या बिगड़ता है?
मेरा सारा जीवन सुधरता है।
निज स्वरूप निखरता है।
दया दृष्टि रखना...दर्शन से वंचित मत करना।
“किसे सुनाएँ मन की पीड़ा, बस्ती सूनी दिखती है।
निज आतम से विरह वेदना, दिन-प्रतिदिन ही बढ़ती है।।
यहीं अकेलापन हे गुरुवर, क्या निज दर्श कराएगा।
अनंत भव से खोई अपनी, आत्मनिधि दिखलाएगा।।''