मैंने सुना है... आपका चैतन्य गृह आलीशान है।
जिसकी अपूर्व निराली शान है।
आलौकिक आपका परिवार है।
ज्ञानदर्शन दो सपूत संग समता नार है।
अहो! अनुपम सुंदर है आपकी समता वधू,
जिसे देख पुलकित है मुक्तिवधू,
उसी वधू ने आपसे मिलने का,
कर लिया है निश्चय वादा।
इसमें आश्चर्य क्या?
क्योंकि आपकी है ही ऐसी अदा।
पाओ गुरूवर मुक्ति का राज्य पाओ।
लेकिन मुझे भूल मत जाओ,
संग मुझे भी ले जाओ,
“ज्ञान दर्शनादिक पुत्रों संग, निज गृह में ही रहते हैं।
आज्ञाकारी समता नारी, सदा साथ में रखते हैं।।
जिनकी आत्मिक सुंदरता लख, मुक्तिवधू भी मुदित हुई।
धन्य धन्य गुरु विद्यासागर, जग में ख्याति उदित हुई।।”