मैंने कई बार श्रेष्ठ भाव को ही,
शुभ भाव मान लिया।
और कई बार शुभ भाव को ही,
शुद्ध भाव मान लिया।
दुनिया में श्रेष्ठ का बोलबाला है।
शुभ का सम्मान नहीं होने वाला है।
लेकिन... अब मैंने सदा शुभ भाव का,
दृढ़ संकल्प ले लिया है।
शुद्ध होकर सिद्ध होने का,
लक्ष्य बना लिया है।
आप ही के प्रभाव से,
आप ही के चैतन्य चमत्कार से।
“गुरुवर की जहाँ नज़र पड़े, वह पत्थर मूरत बन जाती।
फिर चेतन की कथा कहूँ क्या, बात समझ कुछ ना आती।
जो पा ले आशीष गुरु का और वचन यदि सुन लेता।।
भाग्य श्वयं भण्डार खोलकर, मनवांछित फल दे देता।।”