ज्ञान का दीप जलाकर,
गंतव्य पथ दिखाकर,
करा देते हो कर्त्तव्य बोध,
फिर कितना ही हो घना तमस बाहर,
भक्त चलता चला जाता है...
अंतर्प्रकाश पाकर!
मिल जाती है...
उसे अपनी अंतिम मंज़िल!
“अंधकार में दीप जलाकर, तुरत बुझा क्यों देते हो।
राह दिखाकर निजाधीन कर, अति निर्भय कर देते हो।
चलो स्वयं एकाकी होकर, अपनी मंज़िल स्वयं वरो।
गुरुवर विद्यासागर कहते, भगवत् पद को प्राप्त करो।”