यद्यपि देह तो देह ही है इसीलिए,
अन्य देहधारी का तन पल-पल मुरझाता है,
कांति फीकी पड़ती जाती है।
किंतु आपके तन की ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है,
सुंदरता बढ़ती जाती है कारण…
आत्मिक साधना उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है,
और मुक्तिसुंदरी आपके समीप आ रही है,
यह राज हमें भी सिखा दीजिए।
तन की सुंदरता के लिए नहीं,
शिवरमा को पाने के लिए,
आत्मिक शाश्वत सौन्दर्य पाने के लिए।
“अकृत्रिम सौंदर्य सुपूरित, मुखमंडल सम्मोहक हैं।
आत्मिक सुन्दरता दर्शाता, मोह तिमिर का नाशक हैं।।
आयु ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती, सुंदरता बढ़ती जाती।
मुक्तिसुंदरी त्यों-त्यों गुरु के, अधिक विकट आती जाती।"