मुझे नहीं चाहिए कोई अधिकार ,
आपही ने समझाया ये सब हैं विकार।
विकारो से भरा जीवन है बेकार,
क्योंकि अधिकार से उत्पन्न होता है अहंकार,
फिर अहंकार की टंकार से उत्पन्न होता है प्रतिकार।
हे आत्मीय!
मुझे इन सर्व विकारो से दूर,
बहुत दूर...
ओंकार निराकार में ले चलो।
“शरणार्थी को शरणा देकर, शरण प्रदायी कर देते।
सब कुछ छुड़वा कर शिष्यों को, आतम धन से भर देते॥
गुरु चारित्र विचित्र जगत में, इसकी महिमा न्यारी है।
वृहस्पति भी जान सके ना, गुरु अनंत उपकारी है।।''