मैं जो कर रहा हूँ, वह आपको पसंद है,
मुझे नहीं मालूम,
और जो मैं नहीं कर रहा हूँ,
उसे आप कराना पसंद करते हैं,
मुझे यह भी नहीं मालूम,
लेकिन मुझे इतना जरूर मालूम है कि...
जो मुझमें हो रहा है,
वह सब आप ही की अंत:प्रेरणा से हो रहा है।
“मिले गुरु सान्निध्य यदि तो, सुषुप्त शक्ति जागृत हो।
कायर भी हो परम तपस्वी, हालाहल विष अमृत हो॥
मूर्ख बने विद्धान शीघ्र ही, दुर्जन सज्जन हो जाता।
खिन्न हृदय भी प्रसन्न होता, जब गुरुदर्शन हो जाता।।''