मेरे हृदय के लघु पात्र में ,
जब आपने अपनी कृपा का सुख रस उड़ेला,
तब मैं पुण्य फलों में मानो बेभान हो गया।
यह नहीं सोचा कि इतना सारा सुख,
मुझे क्यों दिया जा रहा है?
और जब तिनके सा ढुःख आया,
मानो पहाड़ टूट पड़ा।
तब मैं पाप फलों में बेहोश हो गया।
यही सोचता रहा कि सारा दु:ख,
मुझे ही क्यों दिया जा रहा है?
मेरी बुद्धि सम हो!
न तव हो, न मम हो!
“आप दृष्टि दो जिससे सुख के, सागर में गहरे उतरूँ।
पलके बंद न हो लहरों को, अपने दामन में भर लूँ।।
स्वाति बूंद बनकर तुम बरसो, मैं विद्या मोती पाऊँ।
कर्मों की आँधी-तूफाँ से, किञ्चित् भी ना घबराऊँ।''