आप अपने उपयोग का सदा उपयोग करते हो।
बाह्य काम में भी निष्काम ध्येय का ध्यान रखते हो।
ज्ञानोपयोग को परभावों से भिन्न रखते हो।
मैंने आपको अति भक्ति से निहारा है,
आपको अपना ही सहारा है।
स्वयं की शरण में रहकर आप,
अशरणो की भी हैं शरण।
आपही से मिला ये जीवन,
और आपकी ही भक्ति से करेगे,
शाश्वत मुक्ति का वरण !
“गुरुवर एकाकी निज को ही, निज के द्वारा जान रहे।
निज के लिये स्वयं से निज में, शुद्धातम पहचान रहे।।
औरों से बातें करते पर, मुझको ऐसा लगता है।
निज से निज की चर्चा करते, सुखद नज़ारा लगता है।।''