सर्प को जहर का भय नहीं रहता,
स्वर्ण को अग्नि का भय नहीं रहता,
कुशल छात्र को परीक्षा का भय नहीं रहता,
सच्चे सम्यक्रदृष्टि को भूत का भय नहीं रहता,
और आप श्री की शरण में आने के बाद...
अब कर्मों का भय नहीं रहता।
“नीरस सा लेते आहार पर, सरस मधुर जीवन जीते।
प्रवचन करते वचन न देते, स्वतंत्र हो समरस पीते॥
चौथे युग सम सच्चे गुरुवर, मेरे मन में बसते हैं।
तुम भी दर्श करो जगवालों, दर्शन से भय नशते हैं।।”