भक्तों के ग्रह आपके चरण पड़े,
और उन्हें आहार का लाभ मिला।
मेरे चेतन गृह में आपश्री के चरण पड़े,
और मुझे आत्म विहार का लाभ मिला।
लेकिन …
जब आत्मविहार कर मैं बाहर आया,
तो गुरुदर्श बिन ...
नीर बिन मीन सम तड़पता रहा,
आपको खोजता रहा।
“चउ उपसर्ग परिषह बाईस, जीत रहे अंतर्यात्री।
शिव पथगामी स्वातम बोधी, करपात्री गुरु पदयात्री।।
निश्चय स्वातम रस के भोगी, शुद्धातम में लीन रहें।
भक्त दर्श को रहे तड़पते, नीर बिना जो मीन रहे।।''