आपने...
स्वभाव की सामर्थ्यता,
परभाव की पृथकता,
विभाव की विपरीतता को जाना।
शुद्धात्म धन को पहचाना,
और...
आत्मनिधि को पाने में लग गए।
कर्मचोर अनमने से रह गए।
रत्नत्रय की कुदाली से।
पा ली निज संपदा... परम सुखदा !
धन्य हो आत्मदृष्टा!
परम यशस्वी मम जीवन स्रष्टा!
“दिन में कभी न सोते गुरुवर, निशि में निंद्रा अल्प धरें।
शुद्धातम धन की चर्चा में, जागृत ही दिन-रात रहे।।
कर्मचोर से सावधान नित, सन्मति युग सी चर्या है।
वर्तमान में वर्धमान सी, गुरु के यश की चर्चा है।।”