जब मैं आपको प्रभु मानकर भक्ति करता हूँ तो,
मुझे बहुत अच्छा लगता है,
आप अपने में मगन रहते हैं,
और मैं आपकी भक्ति में मगन,
लेकिन जब आपको गुरू मानकर भक्ति करता हूँ तो आप,
मेरी भक्ति, पूजा के बीच में ही उठकर चले जाते हैं,
जिससे मैं दु:खी हो जाता हूँ,
आपकी भक्ति गुरु मानकर करू या प्रभु मानकर,
यह विचार करता रहता हूँ,
और आपकी भक्ति में डूबा रहता हूँ।
"मीन नीर बिन रह सकता और श्वास बिना तन रह सकता।
किंतु गुरु भक्ति बिन मन ये, नहीं एक पल रह सकता।।
जिनने निज का ज्ञान कराया, वह गुरू प्रभु से बढ़कर हैं।
दीया जलाकर दिया गुरु ने, परम हितैषी गुरूवर हैं।।"