आप गुरु होकर भी कितने लघु हो!
ज्ञानी ध्यानी होकर भी गतमानी हो!
क्योंकि आप जानते हो और
शिष्यों को समझाते भी हो कि...
शाश्त्रज्ञान का अहं कभी नहीं करना है।
क्योंकि शाश्त्रज्ञान शाश्वत नहीं है,
अविनाशी तो आत्मज्ञान है।
और जिसके पास यह ज्ञान है वही धनवान है।
धीमान है, श्रीमान है, बुद्धिमान है।
धन्य हैं मेरे आत्मज्ञानी गुरुदेव!
“ज्ञान गगन में विद्यारथ पर, श्री गुरुवर आरूढ़ हुए।
रहस्यमय सारे प्रश्नों के, उत्तर जिनके गूढ़ रहें॥
जिनके श्रेष्ठ ज्ञान के आगे, बड़े-बड़े विद्वान थके।
ऐसे ज्ञानी गुरु चरणों में, भावसहित मम माथ झुके।।”