आप जो कुछ कहते हैं,
पहले उसका अनुभव करते हैं,
हृदय से नि:सृत आपकी वाणी,
अनुभूति की स्याही से लिखी गई परम प्रमाणी है,
इसीलिए आप जन-जन के श्रद्धापात्र हैं।
मन में सहजता,
वचन में सरलता,
काया में सजगता,
और आत्मा में समता का भरा पात्र हैं।
जो आता है शरण उसे आप समरस पिलाते हैं,
इसीलिए तो धरती के आप देवता कहलाते हैं।
“कर्ण कुहर में गूँज रही है, श्री गुरुवर की दिव्यध्वनि।
दो नयनों में समा गई है, श्री गुरुवर की दिव्य छवि।।
हृदयवेदि पर हुई प्रतिष्ठित, विद्यागुरु की मूरत है।
श्रद्धा से देखूँ तो गुरु में, लगती प्रभु की सूरत है।।''