कबसे सोया था अभी-अभी जागा हूँ।
अनमना सा बैठा था मैं, अभी-अभी खड़ा हुआ हूँ।
बीच चौराहे पर खड़ा था मैं, अभी-अभी चला हूँ।
बेधड़क विपरीत पथ पर चल रहा था मैं,
अभी-अभी लक्ष्य पर चल रहा हूँ।
ध्रुव लक्ष्य पर गतिमान में,
अब ज्ञान से आपूरित गुरुवर,
आपमें विलीन हो रहा हूँ।
आपने ही मति दी, गति दी, प्रगति दी,
भक्ति दी, युक्ति दी और शक्ति भी दी।
“गुरु दक्षिणा माँग रहे तब, बड़ी समस्या घिर आई।
बोल सके ना मुख से कुछ भी, कैसी यह बेला आई।।
मौन स्वीकृति दे मुनिवर ने, गुरु का पद स्वीकार किया।
गुरु शिष्य और शिष्य गुरु बन, सब जग को उपहार दिया।।''