कलंक से मलीन जीव को,
इस जगत में भला कौन आश्रय देता है।
कौन व्यथा कथा को सुनता है।
कौन उसके दुःख को हरता है।
आप जैसा सरल करुणासागर ही होगा वह,
जो अनंतकाल से,
कर्म कलंकित आत्मा को भी आश्रय देता है,
सारा ढुःख हर लेता है।
“सूरिमंत्र के द्वारा गुरु जब, पत्थर पूज्य बना देते।
अपने शरणागत को क्या फिर, भगवन नहीं बना देते।।
महान दागी श्री गुरुवर की, महिमा अकथ निराली है।
जिस घट में गुरुराज विराजे, लगती वहीं दिवाली है।।”