अनंत प्रार्थनाओं के प्रार्थनीय,
परम आराध्य मेरे अजस्त्र सौभाग्य,
पूज्यपाद परम गुरुदेव,
परम वीतरागी संत
आचार्य परमेष्ठी
श्री विद्यासागरजी महाराज
के मुस्लिामी चरणों में
सविनय समर्पित भावांजलि...
"मन गुरु दर्शन मिलन से तृप्त कब होता?
गुरु प्रतीक्षा में हृदय संतप्त कब होता?
रात-दिन वसु याम मैं अवगाहती जिसमें,
वह गुरु भक्ति का ही पावन सरोवर है।
गुरुवर! मेरा जीवन तुम्हारी ही धरोहर है।।''