Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लेखनी लिखती है - 40

       (0 reviews)

    76.jpg

     

    लेखनी लिखती है कि-

    गुरु अपनी ज्ञान साधना से गुरु होता है

    शिष्य का जीवन ऐसे ही गुरु से शुरु होता है

    पहले गुरु स्वयं अपने ज्ञान पर लगी

    ऊपरी परत को तोड़ते हैं

    दृष्टि को अंतर में समाहित कर

    स्वयं को स्वयं से जोड़ते हैं

    तभी अदभुत होता है दिव्य ज्ञान

    उन क्षणों में अतीन्द्रिय भाव से

    उपयोग को सूक्ष्म करके

    श्रद्धा-नयन से दिखता निज का भगवान् ।

     

    शरणागत को वह यही सिखाते हैं

    जिस पथ पर चले स्वयं

    उसी पथ पर शिष्यों को चलाते हैं

     

    कहने में आता है कि-

    गुरु ज्ञान के ऊपर की परत खोलते हैं

    पर वे ज्ञान के बाधक तत्त्व का

    प्रथमतः ज्ञान कराते हैं,

    पश्चात् आवरण को हटाने का

    उपाय बतलाते हैं।

     

    वास्तव में मिथ्या परतों को

    स्वयं ही तोड़ना होता है

    पर कारण में कार्य का

    उपचार भी तो होता है

    गुरु यदि न होते कारण

    तो ज्ञान पर लगा हटता नहीं आवरण।

     

    सच यही है कि-

    ज्ञान दिवाकर विद्या के सागर गुरु

    जिन्हें मिलते हैं,

    ज्ञान पर मिथ्यात्व की मैली परत हटकर

    उसके सद्ज्ञान के कपाट खुलते हैं।

     

    आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...