लेखनी लिखती है कि-
गुरु के पास जाकर क्या करते हो ?
अपनी दुख पीड़ा से भरी
वार्ता ही सुनाते हो
पवित्र गुरु के निकट
दूषित तरंगें पहुँचाते हो
और बदले में पुण्य से भरी
बरसात चाहते हो ?
ध्यान दो
बबूल बोने पर बबूल ही उगता है
आम नहीं
बुरा सोचने से, बुरा कहने से
बुरा ही होता है अच्छा नहीं।
गुरु से कहो मुक्ति का पथ बताइये
स्वात्म सत्ता का बोध जगाइये
पुण्य से सब मिल जाती जगत् की वस्तुएँ
पर अब आप ही चेतनजगत् में ले जाइये
मुझे वस्तुएँ और व्यवहार नहीं
निश्चय तत्त्व का
उपहार चाहिए,
जो पैसा व प्रतिष्ठा से नहीं मिलता
शीश पर आपका आशीष से उठा हाथ चाहिए।
स्मरण रखना
शिष्य जैसा चाहेगा
वैसा ही पायेगा
गुरु तो हैं कल्पतरु
जैसी कल्पना होगी वैसा ही मिलेगा
पर्वत के निकट जा
जो जैसा बोलेगा
वैसा ही लौटकर आयेगा
जैसा शिष्य का मंतव्य है
वैसा ही गंतव्य पायेगा
यदि सर्वस्व कर देगा न्यौछावर
जैसा था बालक विद्याधर
तो पायेगा उत्तम वर
पहुँचेगा सिद्धों के घर।