लेखनी लिखती है कि-
शिष्य के अनेक उलझे प्रश्नों को
गुरु बिना सुने ही समझ लेते हैं
फिर बिना मुख से कहे ही
अपने पवित्र आचरण से
समाधान कर देते हैं।
शर्त यह है कि शिष्य चाहता हो
वास्तव में समाधान
अन्यथा जगत् में अपनी विद्वत्ता दिखाने को ही
चाह रहा हो समाधान।
जो प्यास में ही हो गया तृप्त
वह बुझाने का प्रयत्न नहीं करेगा
उसके मन का खुरापात
गुरु समझ ही लेगा।
जो अपनी शंका का समाधान
चाहते हैं अपनी इच्छानुसार
उन्हें अपात्र मानकर
देते नहीं गुरु ज्ञान का उपहार,
शिष्य के आंतरिक जान लेते हैं गुरुवर विचार
देखकर उसका व्यवहार।
चाहे कोई कितनी ही बात घुमाए
चौमुखी होती दृष्टि गुरु की
वे तो जान ही लेते हैं,
बिना पूछे ही प्रश्नों का
अनायास उत्तर दे ही देते हैं।
समीप रहकर भी अज्ञ
गुरु से कुछ पा नहीं सकते
कोसों दूर रहकर भी
जो हृदय में गुरु को धरते
वे अवश्य ही समाधान पाते
हर प्रश्नों के समाधान हैं गुरुवर
ज्ञान के समंदर मेरे गुरु श्रीविद्यासागर।