लेखनी लिखती है कि-
क्या तुमने कभी देखी
गुरु के नयनों में अद्भुत ज्योति
गुरु के वचनों से झरते मोती
सुमनों-सी झरती पंक्ति
गुरु के आशीष से
निःसृत स्नेह भरी रश्मि
गुरु की छवि दर्शन से
अलौकिक आत्म शांति,
यदि नहीं तो चर्म चक्षु को मुँदो
गुरु के अनंत उपकारों को सुमरो
अपने गर्व को मिटाते जाओ
गुणों से भर जाओगे
गुरु से शिकायत करते रहोगे
तो दुखी ही रह जाओगे
गुरु-कृपा बरस रही हर ओर से
उसे समाने की जगह बना लो
देखो! गुरु, निज प्रभु को छोड़ देख रहे तुम्हें
दृष्टि हटाकर सबसे, गुरु पर जमा लो।
अरे! गुरु ही ब्रह्मा है हमारा
अच्छाईयों का करता है निर्माण
गुरु ही विष्णु है हमारा
शिष्यों का करता है पालन
गुरु ही महेश है हमारा
बुराईयों का करता है प्रक्षालन
गुरु जो करें वह भगवान् भी नहीं कर सकते
इसीलिए तो शिष्य, प्रभु से पूर्व विद्यागुरु को नमते।