लेखनी लिखती है कि-
गुरु की भाषा में
भावों का प्रभाव है
उनके वचनों में
पवित्र भागीरथी-सा प्रवाह है;
क्योंकि सामान्य नहीं गुरु का ज्ञानदान
इससे श्रेष्ठ कोई न दान
ज्ञान से ही दुख के बंद होते हैं कपाट
शाश्वत सुख के खुलते हैं द्वार।
जिनके नयनों में
प्रभु ही प्रभु दिखते हैं,
जिनके वचनों में
प्रभु के संदेश मिलते हैं,
इन्हीं विशेषताओं से
शिष्य इन्हें गुरु मानकर चरणों में नमते हैं।
वे पहले करते हैं मनन मंथन
फिर करते हैं कथन
जिससे सुप्त जागृत हो जाते
जागृत हैं वे उठकर बैठ जाते
बैठे हैं वे खड़े हो जाते
खड़े हैं वे चलना प्रारम्भ कर
सत्य को उपलब्ध हो जाते।
तो गुरु के शब्द सत्य के सम्मुख करते हैं
ऐसे गुरु श्रीविद्यासागरजी को
शिष्य पल-पल भावों से नमते हैं।