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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लेखनी लिखती है-51

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    लेखनी लिखती है कि-

    शिष्य से गुरु का रिश्ता

    होता है अनोखा

    भवसागर से पार जाने

    गुरु हैं एक नौका।

     

    देह की सुंदरता देख

    उनकी प्रसिद्धि प्रतिष्ठा देख भी

    गुरु बनाये नहीं जाते

    वरन् ज्ञान-चारित्र आदि

    गुणों से माने जाते,

    अनेक तारों के मध्य

    चन्द्रमा की भाँति

    गुरु अनेक भक्तों के बीच

    अलग ही पहचाने जाते।

     

    महामानव हैं गुरु;

    जो किसी से कह नहीं सकते

    वह दोष गुरु को ही बता सकते

    स्वार्थ भरी दुनिया में

    एक गुरु को ही अपना बना सकते।

     

    जिनकी सन्निधि पाते ही

    निज की निधि दिखने लगती है

    जिनकी पवित्र परिणति लखकर

    निज की प्रतीति होने लगती है।

    उनकी मधुर आगम वाणी सुन

    लगता है सुना रही माँ लोरी,

     

    तो कभी शिष्य उड़ता है पतंग सम

    अनंत चिन्मय आकाश में

    पर पकड़े रहते हैं

    स्वयं गुरु हाथ में डोरी,

    शिष्यों ने किया है यह अनुभवन

    ऐसे गुरु श्रीविद्यासागरजी को अनंतों नमन।

     

     आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी


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