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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लेखनी लेखती है-46

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    लेखनी लिखती है कि-

    वही हैं ज्ञानी गुरु

    जो हमें हमारे अज्ञान का बोध करा दें

    अंतर्तमस् की पहचान कराकर

    ज्ञान दीप को उजाल दें

    जब वह हमें हमारे दोषों का ज्ञान कराते हैं

    तब भीतर का ज्ञान गुण प्रगटने लगता है

    सुख की सरिता उछलने लगती है

    यहीं से अंतर्यात्रा की शुरुआत होती है।

     

    सद्गुरु वह नहीं

    जो करे सिर्फ ज्ञान की बात,

    सद्गुरु हैं वही

    जिनकी आत्मा में जगमगा रहा ज्ञान प्रकाश

    चाहे दिन हो या रात।

     

    कहने में आता है कि

    गुरु ने दिया है ज्ञान

    पर गुरु का कहना है कि-

    मैं चाहकर भी दे नहीं सकता अपना ज्ञान;

    क्योंकि द्रव्य से गुण को जुदा किया नहीं जाता

    ज्ञान को आत्मा से भिन्न किया नहीं जाता

    स्वरूप को स्वरूपवान से अलग किया नहीं जाता

     

    तू स्वयं ज्ञान स्वरूप है

    उपमाओं से रहित

    तेरा ज्ञान अनूप है।

     

    बस इसी भाँति गुरु

    भव-भवांतर के फैले अज्ञानतम का

    कराते एहसास

    तभी शिष्य

    अपने ज्ञान स्वरूप पर करके विश्वास

    ज्ञानकलाविद् गुरु को बिठाता हृदयासन पर,

    ज्यों श्रीविद्यासागरजी के हृदय में

    विराजे थे गुरु श्रीज्ञानसागर।

     

    आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी


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