आ।श्री।
108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरण कमलों में मेरा परिवार सहित बारम्बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर ?????????
-अभिषेक जैन सा-परिवार
चहचहाती
मधुरिम
स्वर में
धरती माँ
प्यारी
श्रेष्ठ पुत्र
के पग
रखने से
महकी
धरा है
सारी
पुष्प
सुमन
सब
बिछने
को आतुर
चरण
कमल
जहाँ
पड़
जाते
आप
श्रेष्ठ
सुधी
साधक
जीव
दयामय
सोच-सोच
अपने कदम
बड़ाते
जहां
दृष्टि
पड़
जाये
प्रभु की
वो सब
पावन हो
जाता
मिट्टी भी
सोना बन
जाती
फसलें
गाती
लह-
लहाती
सत्य
आप
जैसा
साधक
गुरुवर
क्या
कोई
और
जगत
में
त्याग
तपस्या
सयंम
के तीरथ
हो
गुरुवर
आप
स्वयं
में
किन
शब्दों
में वयां
करुँ
गुरुवर
अगम
महिमा
आपकी
शब्दातीत
लब्ज़
स्वयं
व्याकुल
हो
उठते
आपके
गुण-
स्तवन
में प्रभु
जगदीश
मैं लघु
बुध्दि
नहीं
मुझें
कुछ
ज्ञान
निकल
पड़ा हूँ
किंतु
भक्ति
वश
कहने जो
अतुलनीय
अकथनीय
शब्दातीत
भक्तिमय
शुभ
भावों
से भरी
गगरिया
उड़ेलु
निश-
दिन
प्रभु
चरणों
पर
बस
इतना
दो
आशीष
गुरुवर
करो
मुझें
स्वीकार
लगाओं
मेरा
बेड़ा
भव से
पार
बीच
भवर
में फसी
है मेरी
नैया
प्रभु
आप
ही मेरे
तारणहार
आप
ही इस
जग-सागर
में खिवैया ।।
सविनय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर
?????????
-अभिषेक जैन सा-परिवार