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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

अभिषेक जैन 'अबोध'

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About अभिषेक जैन 'अबोध'

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  1. 🙏🙏🙏आचार्य भगवन के श्री चरणों में भाव पूर्ण विनयांजलि 🙏🙏🙏 नमोस्तु , नमोस्तु , नमोस्तु गुरुवर विनयांजलि सभा में, आए हुए नगर जन। सौभाग्य की है वेला, सौभाग्य के सभी क्षण।। गुरुदेव विद्यासागर, भगवान थे हमारे। सल्लेखना समाधि, गुरु मोक्ष को सिधारे।१। जन्मे थे सदलगा में, थी पूर्णिमा शरद की। मानों उदित दिवाकर, स्वर्णिम उषा अनहद सी।। पितु धन्य है मल्लप्पा, माता श्रीमंती जी। हर्षित सभी दिशाएं, धरती सहित गगन भी।२। नौ वर्ष की उमर में, वैराग्य मन में जागा। पथ वीतराग सच्चा, प्रभु प्रेम का हो धागा।। थी बीस वर्ष आयु, घरबार तज दिया था। आचार्य देशभूषण, व्रत ब्रह्मचर्य लिया था।३। यौवन की थी अवस्था, संसार कब सुहाया। आचार्य ज्ञानसागर, उत्तम गुरु को पाया।। आषाढ़ शुक्ल पंचम, अड़सठ की शुभ तिथि थी। अजमेर की धरा पर, दीक्षा दिगम्बरी थी।४। गुरु ज्ञान ने तराशा, चेतन कृति बनाई। विद्याधरों सी विद्या, गुरुदेव से है पाई।। तप, त्याग से तपे थे, गुरु ज्ञान से पगे थे। विद्या के थे वो सागर, गुरु शिष्य वो सगे थे।५। इतिहास ने अनोखा, दृष्टांत ये भी देखा। गुरु शिष्य बन चुके थे, था दृश्य वह अनोखा।। सन उन्नीस सौ बहत्तर, नसीराबाद की धरा पर। आचार्य विद्यासागर, और शिष्य ज्ञानसागर।६। सल्लेखना समाधि, गुरु ज्ञान की कराई। सेवा, सहज समर्पण, अद्भुत थी वो विदाई।। गुरु शिष्य का उदाहरण, न और दूसरा है। ऋजुता हृदय में कितनी, गुरु का ही आसरा है।७। जिनधर्म की जो धारा, दक्षिण से तब चली थी। बुंदेलखंड धरती, उनकी तपस्थली थी।। तप, त्याग के सरोवर, बहने लगे सतत ही। मुनि आर्यिकाएं दीक्षा, बस मोक्ष की डगर थी।८। गुरुदेव की कृपा से, उद्धार हो रहा है। शिक्षा हो या चिकित्सा, नव मार्ग खुल रहा है।। जेलों में जो भी कैदी, सद्मार्ग पर चले वो। रोजगार हाथकरघा, आत्मनिर्भर स्वयं बने वो।९। आयुर्वेद पद्धति हित, 'पूर्णायु' होवे निर्मल। संस्कारवान कन्या, खोले है प्रतिभा-स्थल।। जीवों पे करुणा धरकर, गौ शालाएं काफी विकसित। सहस्त्रों बरस चलें जो, मंदिर किए वो निर्मित।१०। सर्वोदयी गुरू ने, इक ज्योत यूं जलाई। इंडिया बनेगा भारत, घड़ियां निकट है आई।। हिन्दी हो राष्ट्रभाषा, हो एकता परस्पर। शिक्षा गुरुकुलों सी, भारत हो आत्मनिर्भर।११। जिनधर्म के प्रवर्तक, तुमको नमन हमारा। भावी हो तुम तीर्थंकर, तुमसे ही है सहारा।। मृत्यु महामोत्सव, सबकुछ किया है अर्पित। विनयांजलि हमारी, श्रद्धा सुमन समर्पित।१२। वर्तमान के वर्धमान ने, असमय ही प्रस्थान किया। सिद्ध शिला पर जान विराजे, मोक्षसुधा रसपान किया।। सबको पार लगाने वाले, भवबंधन से पार हुए। मरण समाधि मृत्यु महोत्सव, निज आतम उत्थान किया।। सादर 🙏🙏🙏 अभिषेक जैन 'अबोध'
  2. विनयांजलि संत शिरोमणि हमारे भगवन 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के चरण कमलों में शत–शत वन्दन नमोस्तु मोस्तु नमोस्तु गुरुवर - अभिषेक जैन ‘अबोध’ सा-परिवार विनयांजलि सभा में, आए हुए नगर जन। सौभाग्य की है वेला, सौभाग्य के सभी क्षण।। गुरुदेव विद्यासागर, भगवान थे हमारे। सल्लेखना समाधि, गुरु मोक्ष को सिधारे।१। जन्मे थे सदलगा में, थी पूर्णिमा शरद की। मानों उदित दिवाकर, स्वर्णिम उषा अनहद सी।। पितु धन्य है मल्लप्पा, माता श्रीमंती जी। हर्षित सभी दिशाएं, धरती सहित गगन भी।२। नौ वर्ष की उमर में, वैराग्य मन में जागा। पथ वीतराग सच्चा, प्रभु प्रेम का हो धागा।। थी बीस वर्ष आयु, घरबार तज दिया था। आचार्य देशभूषण, व्रत ब्रह्मचर्य लिया था।३। यौवन की थी अवस्था, संसार कब सुहाया। आचार्य ज्ञानसागर, उत्तम गुरु को पाया।। आषाढ़ शुक्ल पंचम, अड़सठ की शुभ तिथि थी। अजमेर की धरा पर, दीक्षा दिगम्बरी थी।४। गुरु ज्ञान ने तराशा, चेतन कृति बनाई। विद्याधरों सी विद्या, गुरुदेव से है पाई।। तप, त्याग से तपे थे, गुरु ज्ञान से पगे थे। विद्या के थे वो सागर, गुरु शिष्य वो सगे थे।५। इतिहास ने अनोखा, दृष्टांत ये भी देखा। गुरु शिष्य बन चुके थे, था दृश्य वह अनोखा।। सन उन्नीस सौ बहत्तर, नसीराबाद की धरा पर। आचार्य विद्यासागर, और शिष्य ज्ञानसागर।६। सल्लेखना समाधि, गुरु ज्ञान की कराई। सेवा, सहज समर्पण, अद्भुत थी वो विदाई।। गुरु शिष्य का उदाहरण, न और दूसरा है। ऋजुता हृदय में कितनी, गुरु का ही आसरा है।७। जिनधर्म की जो धारा, दक्षिण से तब चली थी। बुंदेलखंड धरती, उनकी तपस्थली थी।। तप, त्याग के सरोवर, बहने लगे सतत ही। मुनि आर्यिकाएं दीक्षा, बस मोक्ष की डगर थी।८। गुरुदेव की कृपा से, उद्धार हो रहा है। शिक्षा हो या चिकित्सा, नव मार्ग खुल रहा है।। जेलों में जो भी कैदी, सद्मार्ग पर चले वो। रोजगार हाथकरघा, आत्मनिर्भर स्वयं बने वो।९। आयुर्वेद पद्धति हित, 'पूर्णायु' होवे निर्मल। संस्कारवान कन्या, खोले है प्रतिभा-स्थल।। जीवों पे करुणा धरकर, गौ शालाएं काफी विकसित। सहस्त्रों बरस चलें जो, मंदिर किए वो निर्मित।१०। सर्वोदयी गुरू ने, इक ज्योत यूं जलाई। इंडिया बनेगा भारत, घड़ियां निकट है आई।। हिन्दी हो राष्ट्रभाषा, हो एकता परस्पर। शिक्षा गुरुकुलों सी, भारत हो आत्मनिर्भर।११। जिनधर्म के प्रवर्तक, तुमको नमन हमारा। भावी हो तुम तीर्थंकर, तुमसे ही है सहारा।। मृत्यु महामोत्सव, सबकुछ किया है अर्पित। विनयांजलि हमारी, चरणों में है समर्पित।१२। सादर 🙏🙏🙏 अभिषेक जैन 'अबोध'
  3. 🕉️🕉️🕉️जैन धर्म की जय🕉️🕉️🕉️ अहिंसामयी विश्व धर्म की जय 🙇🙇🙇जैनम् जयतु शासनम्, वंदे विद्या सागरम्🙇🙇🙇 महावीर पथ पालन करना, जीवों को हितकारी है, सत्य, अहिंसा उर में धारे, मोक्ष मार्ग अधिकारी है, इस जीवन का नहीं ठिकाना, घड़ी कौन सी अंतिम हो, स्वास-स्वास में वास प्रभू का, सेवक आज्ञाकारी है।१। जिनपथ पर नित बढ़ते रहना, मानव जीवन लक्ष्य है, शाकाहार, छानकर पानी, खाना केवल भक्ष्य है, त्याग, तपस्या सुख का साधन, मानव को हितकारी है, देव, शास्त्र, गुरु उर में धरना, त्यागें जो भी अभक्ष्य है।२। सदा निडर बन, कार्य करें जो, मिलती उसे सफलता है, इस जीवन में मार्ग अहिंसा, हरती सभी विफलता है, आत्म धर्म ही सच्चा जानों, जीवन में हितकारी है, सत्य, अहिंसा व्रत अपनाना, आत्म स्वरूप निकटता है।३। पंच महाव्रत पालन करना, साधु धर्म है बतलाया, पांच अणुव्रत उर में धरना, श्रावक का पथ समझाया, चार कषायें छोड़ मनुज ही, सुख पाय अपरम्पार है, लोभ पाप का बाप सदा ही, ब्रह्मचर्य लख हर्षाया।४। धर्म शरण आ जाओ वंदे, पा लेय हर्ष अपार है, भेदभाव सब भूल हृदय से, प्राणिमात्र व्यवहार है, ॐ, ॐ ध्वनि उर में गूँजें, पंच परमेष्ठि ध्यान रहें, जियों और जीने दो सबकों, विश्व शांती उपचार है।५। सादर जय जिनेंद्र, 🙏🙏🙏🕉️🕉️🕉️🙇🙇🙇 अभिषेक जैन 'अबोध'
  4. 💖💗💕जैनम् जयतु शाशनम् , वंदे विद्या सागरम् 💕💗💖 दिनरात मेरे गुरूवर, बस भावना ये मेरी, तेरी शरण में बीतें, बस जिंदगी ये मेरी, गुरुवर चरण धुली को, मस्तक लगाऊँगा नित, संसार के भवंर में, उलझी है नाँव मेरी।। गुरु आपकी शरण ही, भव पार ले चलेगी, काटों भरी ये राहें, यूँ ही नहीं कटेगी, नित कामना के पीछे, जीवन भटक रहा है, ये वासनाएँ मुझकों, कब तक युहीं डसेगी।। निजआत्म की शरण ही, पाना मैं चाहता हूँ, है मोक्ष की गली जो, जाना मैं चाहता हूँ, मंजिल सदा-सदा से, गुरु आपकी शरण है, जो मार्ग चल रहे हो, चलना मैं चाहता हूँ।। जीवन भटक गया है, मृत्यु ही बस सहेली, ये काम - वासनाएँ, लगती सदा पहेली, दुख-दर्द पा रहा हूँ, जग में भटक-भटककर, बस धर्म की शरण है, राहें मगर अकेली।। नित शीश झुक रहा है, प्रभु आपके चरण में, मंजिल दिखें सदा ही, गुरु आपकी शरण में, मुख मोड़ के सभी से, संसार त्यागना है, रत्नत्रय का पालन, धरूँ समाधी मरण में।। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर 🙏🙏🙏 अभिषेक जैन 'अबोध' कुपी परिवार, जिला छतरपुर (म.प्र.) भेल भोपाल-४६२०२२
  5. 🕉️🕉️🕉️गुरु का चौमासा🕉️🕉️🕉️ छाओ रे... छाओ रे...छाओ रे...हर्ष सारी नगरी, आओ रे...आओ रे...आओ रे... भोपाल नगरी ।०। चौमासे की मंगल घड़ियां, लगती कितनी प्यारी, संत हमारे विद्यासागर, तिहु लोक हितकारी, आज्ञावर्ती शिष्य गुरुवर, मुनि सम्भव सागर जी, आओ रे..आओ रे...आओ रे... भोपाल नगरी।१। विद्यासागर भक्त मंडली, देखों अति प्यारी, गुरूवर के प्रति सदा समर्पित, कितनी न्यारी-न्यारी, भक्त हृदय भगवान विराजे, क्रम सदियों से जारी, आओ रे...आओ रे...गुरुवर का चौमासा... भोपाल नगरी.....।२। झूम-झूम के नाचें गाए, सब ही हर्ष मनाए, भोजपुर में विनय करे और पिपलानी में लाए, अवधपुरी भी राह तक रही, देखों गुरूवर आए, आओ रे, आओ रे...आओ रे...भोपाल नगरी।३। गुरूवर मेरे संभव सागर, मन में, सदा विराजे, नमन, नमन है, हाथ जोड़कर, मुनिवर नगरी आजे, भक्त तुम्हारें,करे प्रतीक्षा, चरण तुम्हारे लागे, आओ रे, आओ रे...आओ रे...भोपाल नगरी।४। मैं 'अबोध', नन्हा सा बालक, शरण तिहारी आया, चरण शरण है गुरु आपके, भाव यही उमगाया, भक्ति भाव से विनयपूर्वक, गान ये मंगल गाया, आओ रे, आओ रे...आओ रे...भोपाल नगरी।५। नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु गुरुवर 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 समस्त जैन समाज पिपलानी, विद्यासागर अवधपुरी, भोपाल नगरी अभिषेक जैन 'अबोध'
  6. 🐂🐃🐎🦌जीव दया🦌🐎🐃🐂 जीव दया के क्षेत्र में, देवे नित उपहार। पशुप्रेम से नित मिले, मन को शांति अपार।१। जीवन बड़ा अमोल है, सब जीवों से प्रेम। करुणा नित मन में पले, सकल जगत की क्षेम।२। उत्सव के दिन नियमतः, नेक करे हर कार्य। गाय मात संवर्धनी, पूर्वज अपने आर्य।३। सभी जीव में आत्मा, सब में ही भगवान। निज स्वार्थ की सिद्धिवश, हर लेते क्यों प्रान।४। भारत का दुर्भाग्य है, पशु मांस निर्यात। राम-कृष्ण की धरा यह, क्यों फिर ये आघात।५। सादर 🙏🙏🙏🕉️🕉️🕉️🙇🙇🙇 अभिषेक जैन 'अबोध'
  7. 🙏🙏🙏 आचार्य श्री🙏🙏🙏 मंदिर में बाजे घंटियाँ मन भक्ति भाव उमगाये प्रभु दर्शन मुझको मिलें जीवन धन्य हो जाये।। गुरू देव की चरण रज अपने शीश लगाएं आगम पथ पर जो बढ़े जीवन सफल बनाएं।। देव-शास्त्र और गुरु को मन-वच-काय प्रणाम मात-पिता की सेवा में बीतें आठों याम।। नमन करुँ आचार्य को निश दिन तव गुणगान दुःख रूपी जग-नदियाँ में मंगलकारी तेरा नाम।। शाश्वत सुख सागर गुरु विद्यासागर नाम जग हितकारी संत को बारम्बार प्रणाम।। सादर 🙇🙇🙇 अभिषेक जैन 'अबोध' भेल भोपाल-४६२०२२ ९४२५३०२७४२
  8. संत शिरोमणि १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर -अभिषेक जैन 'अबोध ' स-परिवार शाश्वत सुख सागर गुरु विद्यासागर नाम जग हितकारी संत को बारम्बार प्रणाम।। भारत देश की पावन माटी ऋषियों-मुनियों की धरती है आचार्य श्री विद्यासागर की सयंम स्वर्ण जयंती है।। मास जुलाई की शुभ वेला सयंम स्वर्ण महोत्सव है दीक्षा अवधी के 50 वर्ष पूर्ण तप, त्याग, तपस्या उत्सव है।। तप, त्याग, तपस्या मूरत जो चलतें-फिरते तीरथ है है योगीश्वर, है महासंत तव चरणों में युग नत-मस्तक है।। खजुराहों दूनियाँ में कामवेद शिल्पकला का रूपक है आचार्य श्री जी के चरण पड़े अहिंसामई विश्वधर्म उद्घोषक है।। कलयुगी ये विश्वसारा भय-चिंता से व्याप्त है सत्य, अहिंसा, प्रेमभाव ही सुख-शांति का मार्ग है।। गुरू देव की चरण रज अपने शीश लगाएं आगम पथ पर जो बढ़े जीवन सफल बनाएं।। नमन करुँ आचार्य को निश दिन तव गुणगान दुःख रूपी जग-नदियाँ में मंगलकारी तेरा नाम।। मंदिर में बाजे घंटियाँ मन भक्ति भाव उमगाये प्रभु दर्शन मुझको मिलें जीवन धन्य हो जाये।। है धन्य भाग्य हमारा जो गुरुवर का सानिध्य मिला कलयुग में भी सत्य धर्म का जिनआगम का सौपान मिला।। देव-शास्त्र और गुरु को मन-वच-काय प्रणाम मात-पिता की सेवा में बीतें आठों याम।। है गुरुवर ये मेरा जीवन तुम चरणों में अर्पित है सत्य, अहिंसा, धर्म मार्ग पर हर एक साँस समर्पित है।। है गुरुवर तेरे दरश मिलें सुखामृत रसपान हुआ तेरे चरणों की रज पाके मेरा जीवन धन्य हुआ।। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -अभिषेक जैन 'अबोध ' स-परिवार
  9. गुरुवर मेरे विद्यासागर नित-नित करुँ प्रणाम सब जीवों को सुख मिलें भाव यहीं अभिराम।। नियम, देशना, तत्ववोध का अनुपम संगम लेखा है आचार्य श्री विद्यासागर में महावीर को देखा है।। देखों प्यारे भारत वालों धर्म, संस्कृति क्या कहलाती त्याग,तपस्या,सयंम के आगें सारी धरती नत-मस्तक हो जाती।। अहिंसामई विश्वधर्म की होगी जय जयकार करुणा, प्रेम, दया भाव का होगा नित संचार।। गुरुवर का आशीष मिला धन्यभाग्य हमारा है आचार्य श्री विद्यासागर का होने वाला चौमासा है।। सादर 🙇🙇🙇 अभिषेक जैन 'अबोध' भेल भोपाल-४६२०२२ ९४२५३०२७४२
  10. 🙏 🙏 🙏 गुरु महिमा🙏 🙏 🙏 गुरू पूर्णिमा के दिवस पर गुरु महिमा का गुणगान शिष्य के सद आचरण से होता गुरु यशगान।। नमन करुँ गुरुदेव को दण्डवत उन्हें प्रणाम ज्ञान अमृत का सदा मिलें मुझें रसपान।। संसार सागर में सदा गुरू ही खेवनहार धर्म रूपी नाव चढ़ जग विषयों से पार।। सादर 🙇🙇🙇 अभिषेक जैन 'अबोध' भेल भोपाल-४६२०२२ ९४२५३०२७४२
  11. 🌸🌼🌻संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज🌻🌼🌸 👏👏👏कौटि-कौटि नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर👏👏👏 -अभिषेक जैन 'अबोध' सा-परिवार कैसे करुँ गुरुवर आपका स्तवन गुणगान मैं अज्ञानी, है नहीं, मुझको समझ व ज्ञान आपकी चर्याये गुरु सारे लोक में विख्यात है त्याग, सयंम, साधना में डूबें हुए दिन-रात है संसार के प्राणी जगत के प्रति करुणा-दया विश्व में सुख - शांति की होवे सदा स्थापना सत्य,अहिंसा धर्म के रथ पर सदा आरूढ़ है पापमय होते जगत में आप जलज प्रसून है आपकी शुभ देशना से खुले मोक्ष पथ के द्वार आपके चरणों में सदा गुरुवर नमन बारम्बार।। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर 👏👏👏👏👏👏👏👏👏 -अभिषेक जैन 'अबोध' सा-परिवार
  12. 🙇🙇🙇नमन🙇🙇🙇 नमन करुँ गुरुदेव को आठों पहर दिन रैन उर में श्रद्धा भावना मिलें सदा सुख-चैन।। जिनवाणी की वाचना जिन आगम का सार चतुर्मास आरंभ हुआ खजुराहों हुआ निहाल।। साहित्य के सँसार में कलम मेरी जब चली भावनाएँ ही प्रमुख थी शब्दों की गीतांजली।। सादर 🙇🙇🙇 अभिषेक जैन 'अबोध' भेल भोपाल-४६२०२२ ९४२५३०२७४२
  13. 🙇🙇🙇आचार्य प्रवर गुरुवर विद्यासागर जी महा मुनिराज 🙇🙇🙇 शरद पूर्णिमा दिवस में हुआ ज्ञान सूर्योदय गुरुवर विद्यासागर का आज है जन्मोत्सव।। मन मैला, तन भी है मैला फिर भी द्वार तिहारे आऊँ गुरुवर तेरे चरण शरण है रे सुख चैन यहीं पे पाऊँ।। रंग रूप के फेर में, फ़सा हुआ इंसान आत्मतत्व को भूलकर, भटकें रे नादान।। मन ये पागल बाबरा, सिर्फ सुखों की आश निज आत्म को भूलकर, बाहर करे तलाश।। आधुनिकता की* होड़ में, दौड़ रहें सब आज प्रेम परस्पर भूलकर, पाल रहें है खाज।। नित दर्शन जिन देव का, मन में उनका वास सुबह शाम हरि नाम हो होगा आत्म प्रकाश।। सादर 🙇🙇🙇 अभिषेक जैन 'अबोध' भेल भोपाल-४६२०२२ ९४२५३०२७४२
  14. 👏👏👏आचार्य श्री👏👏👏 कौटी-कौटी नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर -अभिषेक जैन 'अबोध' सत्य, अहिंसा के चिर पालक, जैन धर्म का सार हो तप, सयंम के नित आराधक, योगीश्वर महाराज हो चरण कमल पड़ जायें जहां पर, घन्य धरा हो जाती है विश्व शांति के सदा प्रवर्तक, संत शिरोमणि आप हो।। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर -अभिषेक जैन 'अबोध' स-परिवार
  15. 💖💕💞श्रमदान 💞💕💖 संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर की प्रेरणा से श्रम के माध्यम से समाज के सभी वर्गों के लिए रोजगार का सुंदर, सुलभ, व उत्तम साधन...अब भोपाल में भी उपलब्ध @ हबीबगंज जैन मंदिर, एम.पी. नगर भोपाल (म.प्र.) अहिंसक खादी वस्त्रों को, अपनालें मन से आज हथकरघा से ही भारत का, होगा पूर्ण-विकास।। सृजन, कला, और शिल्प का अद्धभुत देखा संगम आचार्य भगवन की प्रेरणा से 'श्रमदान' का शुभारंभ।। देश की धड़कन में वसा, मध्यप्रदेश स्थित प्यारा भोपाल आचार्य श्री जी की प्रेरणा से, अहिंसा से होगा यहाँ कमाल।। -अभिषेक जैन 'अबोध' 💖💕💞🌻🌷🌹🌸💐🌳🌴🌾🌿☘🌱🍀💞💕💖
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