आ।श्री।
108 आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के चरण कमलों में मेरा साष्टान्ग नमन, वंदन, अभिवादन...नमोस्तुते नमोस्तुते नमोस्तुते ???
-अभिषेक जैन सा-परिवार
विपत्ती
जो भी
जीवन में
स्वत: ही
दूर हो
जाती
गुरुवर
आपकी
छबी लख
मुस्कुलें
पार हो
जाती
मधुर
मुस्कान
मय चहरा
मन के
झरोखों से
जब आँखो में
घिरता है
समझ लो
जिन्दगी की
खूबसूरती
का अहसास
होता है
अभी मंजिल
बहुत है
दूर
मुझें खुद
को ही
पाना है
स्वयं
में डूबकर
मुझको
प्रभू तुझ
में खुदको
डुबाना है
ये वक़्त
का दरियां
यू ही
चंचल
रेत सा
फिसले
कुछ
पल मुझें
गुरुवर
तुम
सम
बिताना है
यही
आराधना
मेरी
यहीं
मेरी
तमन्ना है
यही
आरजू
दिल की
तुझें
सासों में
बसाना है
संसार
सागर से
गुरुवर
उस
पार
जाना है
बस इक
शरण
तेरी
तेरा ही
आसरा
गुरुवर
तेरी
ही
भक्ति में
मुझें
बस डूब
जाना है।।
सविनय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर
?????????
-अभिषेक जैन सा-परिवार