छल
108 श्री आचार्य भगवन विद्यासागर जी मुनि महाराज के चरणों में सादर समर्पित...
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर -अभिषेक जैन
मायावी संसार में उलझे
रहे हमेश, निज से न
पहचान हुई, भ्रमें सदा
भूलकर जीवन उदेश्य
मोह-माया के बन्धन
बांधे, किया सन्क्लेश
राग-द्वेष ही भाव पाले
नित-आतम से अतिरेक
निज घर-कुटुंब को अपना माना
रिश्ते-नातों को ही सच्चा जाना
मिथ्या जग की चर्यायों से उपजे
सुख-दुःख में भूला आत्म-वेश।।
सादर समर्पित
-अभिषेक जैन