संत शिरोमणि १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर -अभिषेक जैन 'अबोध ' स-परिवार
शाश्वत सुख सागर गुरु
विद्यासागर नाम
जग हितकारी संत को
बारम्बार प्रणाम।।
भारत देश की पावन माटी
ऋषियों-मुनियों की धरती है
आचार्य श्री विद्यासागर की
सयंम स्वर्ण जयंती है।।
मास जुलाई की शुभ वेला
सयंम स्वर्ण महोत्सव है
दीक्षा अवधी के 50 वर्ष पूर्ण
तप, त्याग, तपस्या उत्सव है।।
तप, त्याग, तपस्या मूरत जो
चलतें-फिरते तीरथ है
है योगीश्वर, है महासंत
तव चरणों में युग नत-मस्तक है।।
खजुराहों दूनियाँ में कामवेद
शिल्पकला का रूपक है
आचार्य श्री जी के चरण पड़े
अहिंसामई विश्वधर्म उद्घोषक है।।
कलयुगी ये विश्वसारा
भय-चिंता से व्याप्त है
सत्य, अहिंसा, प्रेमभाव ही
सुख-शांति का मार्ग है।।
गुरू देव की चरण रज
अपने शीश लगाएं
आगम पथ पर जो बढ़े
जीवन सफल बनाएं।।
नमन करुँ आचार्य को
निश दिन तव गुणगान
दुःख रूपी जग-नदियाँ में
मंगलकारी तेरा नाम।।
मंदिर में बाजे घंटियाँ
मन भक्ति भाव उमगाये
प्रभु दर्शन मुझको मिलें
जीवन धन्य हो जाये।।
है धन्य भाग्य हमारा जो
गुरुवर का सानिध्य मिला
कलयुग में भी सत्य धर्म का
जिनआगम का सौपान मिला।।
देव-शास्त्र और गुरु को
मन-वच-काय प्रणाम
मात-पिता की सेवा में
बीतें आठों याम।।
है गुरुवर ये मेरा जीवन
तुम चरणों में अर्पित है
सत्य, अहिंसा, धर्म मार्ग पर
हर एक साँस समर्पित है।।
है गुरुवर तेरे दरश मिलें
सुखामृत रसपान हुआ
तेरे चरणों की रज पाके
मेरा जीवन धन्य हुआ।।
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर
-अभिषेक जैन 'अबोध ' स-परिवार